भारतीय पेड़-पौधों की पूजा क्यों करतें हैं?
चिड़ियों नें चहचहाना शुरू कर दिया है।
पर्वतों से आती मंद बयार पेड़ों को लहराती हुई प्राणियों के शरीर में नई ऊर्जा का संचार करनें लगी हैं।
सूर्य क्षितिज से निकलकर ऊपर आकाश की और गतिमान है अंधकार तो मानो सिर पर पैर रखकर भागा जा रहा है।
लोग नित्य-प्रति के कार्यों में व्यस्त हैं भारत जाग चुका है।
स्नान करनें के बाद कोई सूर्य को अर्घ्य दे रहा है तो कोई तुलसी के पौधों को जल अर्पित कर रहा है। कोई अपनें काम पर जाते वक़्त पीपल या बरगद के पेड़ों को प्रणाम कर रहा है।
अगर आपनें कभी भारतीय जनमानस को ऐसे नित्य कर्म करते देखा है तो क्या आपके मन में ऐसा प्रश्न नहीं उठा कि आखिर लोग पेड़-पौधों को इतनी तरज़ीह क्यों देतें हैं?
अपनें ये भी देखा होगा की बच्चे का जन्म होता है तब भी पेड़ों का आशीर्वाद दिलाया जाता है और शादी होती है तब भी और जब इस शरीर को छोड़कर जीव गमन करता है तब उसकी अस्थियों को पेड़ों के पास रखनें के उपरांत ही जल में विसर्जित किया जाता है।
मैंने इन सब कर्मो को बहुत करीब से देखा है।
और इस संसार में अच्छा खासा समय व्यतीत करनें के बाद शायद इसका मर्म कुछ-कुछ समझ में आनें लगा है।
अगर आप पहले से ये जानतें हैं तो अच्छी बात है नहीं तो मैं आपको बता दूँ पेड़ों की पूजा वैदिक काल से ही भारत में होती चली आ रही है।
मतलब पेड़-पौधों की पूजा करनें का कारण भारतीयों की संस्कृति में ही अन्तर्निहित है।
और भारतीय संस्कृति का केंद्र बिंदु है परमात्मा की ऊर्जा।
आत्मा भी उसी का अंश है,
ये संपूर्ण सृष्टि भी उसी का अंश है,
संपूर्ण ब्रह्माण्ड भी उसी का अंश है।
विज्ञान भी बिग-बैंग के सिद्धांत को मानता है जिसमें सारी सृष्टि एक ही बिंदु में समाई हुई थी जिसका जन्म महाविस्फोट से हुआ है।
इस प्रकार एक ही ऊर्जा के अनंत प्रतिरूप भिन्न-भिन्न रूपों में इस सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु तथा मानव सभी में।
फिर पेड़ों की ही पूजा क्यों?
क्योंकि उन्होंने इस संसार को बहुत कुछ दिया है वो भी निस्वार्थ भाव से, बिना किसी भेद-भाव के, उन्होंने जाति नहीं देखी ना ही आधुनिक पंथो को देखा, ना ही उन्होंने स्त्री पुरुष में विभेद किया और ना ही रंगभेद किया।
उस ईश्वर की, परमात्मा की अप्रतिम छवि के साथ जिन्होनें केवल मानव कल्याण के लिए अपना सब कुछ समर्पित किया हो,
स्वार्थ जहाँ छू भी ना गया हो,
ऐसी महानता की पूजा करना भी गर्व की बात है!
भारतीयों नें ख़ुद को कभी भी किसी भी दायरे में बांधा नहीं, अगर किसी मानव नें भी मानवता की रक्षा के लिए अपनें जीवन को समर्पित किया हो उसकी भी उन्होंने पूजा की है ख़ुद को उनके आगे नतमस्तक किया है।
पेड़- पौधों में स्वयं परमात्मा का स्वरुप देखना उनके ह्रदय की विशालता का प्रतिबिम्ब मात्र है। मेरी इच्छा है हम सब अपनी ज़िम्मेदारियों को समझें और जहाँ तक हो सकें उससे आगे जा कर, कड़ी मेहनत कर इस धरती को उन्हीं पुण्यमयी प्रकृति के देवदूतों की सेवा करें उन्हें पुनर्स्थापित करें।
यही हमारा ध्येय होना चाहिए, सुख वही है शान्ति वही है।
परमार्थ के लिए जीवन समर्पित करनें वाले देव रुपी वृक्षों को मैं प्रणाम करता हूँ।